हुकूमते फ़ातिमिया (297 हि./909 ई. से 567 हि./1171

हुकूमते फ़ातिमिया (297 हि./909 ई. से 567 हि./1171 ई.) 

यह हुकूमत 297 हि./909 ई. में उत्‍तरी अफ्रीक़ा के क़ैरवान शहर में स्‍थापित हुई। इस सल्‍तनत का संस्‍थापक उबैदुल्‍लाह चूँकि प्‍यारे रसूल (صلى الله عليه وسلم) की बेटी हज़रत फ़ातिमा (رضي الله عنه) की औलाद में से था 

इसलिए उसे 'सल्‍तनते फ़ातिमिया' कहा जाता है। उबैदुल्‍लाह इतिहास में मेहदी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अब तक जो हुकूमतें क़ायम हुई थीं वे सब बग़दाद की ख़िलाफ़त की अधीनता स्‍वीकार करती थीं और जुमा की नमाज़ के ख़ुत्‍बे में अब्‍बासी ख़लीफ़ा का नाम पढ़ती थीं। फ़ातिमियों के काल में मुसलमानों की समुद्री ताक़त का बहुत विकास हुआ। सक़लिया और इटली का दक्षिणी भाग उनके क़ब्‍जे़ में था। फ़ातिमी बेडे़ जेनेवा, रूम और नेपल्‍ज़ पर हमले करते रहते थे और यूरोप के समुद्री बेडे़ उनके मुक़ाबले में ठहर नहीं सकते थे।  

नासिर ख़ुसरो (394 हि./1003 ई. से 452 हि./1060 ई.)

फ़ातिमियों के काल में ख़ुरासान का एक बहुत बडा़ लेखक और पर्यटक नासिर ख़ुसरो (394 हि./1003 ई. से 452 हि./1060 ई.) मिस्र आया था। उसने अपने यात्रा-वृतांत में मिस्र और शाम की बडी़ रोचक घटनाऍं लिखी हैं। इस यात्रा-वृतांत से अंदाज़ा होता है कि ये दोनों क्षेत्र उस काल में कितने विकसित थे। वह लेबनान के शहर 'तराबुलुस-अश-शाम' के सम्‍बन्‍ध में लिखता है कि यहॉं के मकान चार और छ: मंजिल के हैं, गलियॉं और बाज़ार मुहल्‍लों की तरह साफ-सुथरे हैं। यहॉं समरक़ंद से अच्‍छा काग़ज बनता है और बीस हजा़र आबादी है।
सीदा (Sidon) के सम्‍बन्‍ध में लिखता है- ''यहॉं का बाज़ार ऐसा सजा हुआ था कि मैने इसे देखकर समझा कि बादशाह के स्‍वागत के लिए सजाया गया है। बाद में मालूम हुआ कि यह शहर हमेशा ऐसा ही सजा हुआ रहाता है।''

सूर (Tyre), रमला और तनिस (Tenes) के सम्‍बन्‍ध में लिखता है- ''शहर सूर में पॉंच या छ: मंजिल की इमारतें है, फ़व्‍वारे बहुत अधिक हैं, बाज़ार ख़ूबसूरत सामानों से पटे पडे़ है। शाम के शहरों में सम्‍पन्‍नता के लिहाज़ से ये शहर मिसाल देने लायक़ है। रमला में अक्‍सर इमारतें संगमरमर की हैं, जिन पर नक्‍़क़ाशी की गई है। यहॉं से अच्‍छा इंजीनियर कहीं नहीं होता।''

''तनिस (Tenes) के शहर में दो सौ दुकानें केवल इत्र वालों की हैं। यहॉं एक ख़ास किस्‍म का रेश्‍मी और सूती कपडा़ बनाया जाता है, जो दूसरी जगह नहीं बनाया जाता। घाट पर एक हज़ार कश्तियॉं रहती है।''      
  
वर्तमान काल से पहले ऊँची इमारतें बनाने का ज्‍़यादा रिवाज नहीं था, लेकिन क़ाहिरा की इमारतों का नासिर ख़ुसरो ने जो हाल लिखा है उससे मालूम होता है कि गगनचुम्‍बी इमारतों के लिहाज़ से क़ाहिरा को दुनिया में वही हैसियत हासिल थी जो आजकल न्‍यूयार्क और दूसरे अमेरिकी शहरों को हासिल है। वह लिखता है कि क़ाहिरा की अक्‍सर इमारतें पॉंच से छ: मंजिल की हैं और फिसतात (क़ाहिरा का पुराना भाग) की कुछ इमारतें सात से चौदह मंजिल तक की हैं। मकानों के अन्‍दर बाग़ और चमन हैं और लोग छतों पर भी सैरगाहें बनाते हैं। मकान पाकीज़गी और सुन्‍दरता में अदभुत हैं। शहर में कम से कम बीस हज़ार दुकानें हैं और पचास हज़ार ऊँट पानी भरते हैं। क़ंदीलों का बाज़ार सबसे अच्‍छा है। कुछ बाज़ारों में दिन-रात क़ंदीलें रौशन रहती हैं। शहर में दो सौ सराय हैं। सबसे बडी़ सराय का किराया बीस हज़ार दीनार सालाना वुसूल होता है। उद्योग के सम्‍बन्‍ध में लिखता है कि मिट्टी के बरतन ऐसे पारदर्शी बनते हैं कि हाथ रखो तो दूसरी तरफ़ दिखाई देता है। इसी प्रकार शीशा भी साफ़ बनता है।

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